Posts

Showing posts from October, 2015

26 अक्तूबर को भारत लौटेगी मूकबधिर गीता

Image
              पाकिस्तान में रह रही मूकबधिर भारतीय युवती गीता 26 अक्तूबर को अपने घर लौट पाएगी क्योंकि दोनों देश की सरकारों ने उसकी स्वदेश आने की यात्रा को अंतिम मंजूरी दे दी है। वह गलती से सीमा पार करने के बाद से करीब एक दशक से यहां मौजूद है।               गीता जब सात या आठ साल की थी, पाकिस्तानी रेंजर्स को 15 साल पहले लाहौर रेलवे स्टेशन पर समझौता एक्सप्रेस में वह अकेली बैठी हुई मिली थी। पुलिस उसे लाहौर के चैरिटेबल ‘इदी फाउंडेशन’ के पास ले गई और बाद में उसे कराची में एक आश्रय स्थल में रखा गया।               23 साल की गीता एक दशक से अधिक समय से यहां इदी फाउंडेशन के आश्रय स्थल में रह रही है। इदी फाउंडेशन के फहद इदी ने कहा कि गीता सोमवार सुबह पीआईए की उड़ान से नयी दिल्ली के लिए रवाना होगी। उसके साथ मैं, मेरे पिता फैसल इदी, मेरी मां तथा मेरी दादी बिलकीस इदी जाएंगे।

मुस्लिम परिवार ने 10 किलो का वनीला केक काट के मनाया गाय का जन्मदिन

Image
            दादरी हत्याकांड के बाद से एक ओर देशभर में बीफ पर बैन को लेकर बहस चल रही है पर ऐसे में उत्तर प्रदेश के हापुड़ के एक मुस्लिम परिवार ने एक नई मिसाल पेश की है। सिकंदर गेट कॉलोनी के रहने वाले इस परिवार ने एक वर्षीय गो वंश 'जूली' का जन्मदिन मनाया।             जूली का जन्मदिन मनाने के लिए खास इंतजाम किया गया था। जन्मदिन के अवसर पर परिवार ने 10 किलोग्राम बिना अंडे वाला केक मंगाया था। जूली को बर्थेडे कैप भी पहनाया गया था और मेहमानों के लिए पकौड़े, मिठाइयों और फलों की व्यवस्था की गई थी।             29 वर्षीय मोहम्मद इरशाद का कहना है कि जूली और उसकी मां भोली उनके परिवार के सदस्य की तरह हैं। जिस तरह से वे अपने बच्चों का ख्याल रखते हैं वैसे ही उन दोनों का भी ख्याल रखते हैं। जब जूली के जन्मदिन का समय आया तो वे कुछ बड़ा करना चाहते थे। इसके लिए वे पहले से योजना बनाने लगे और जन्मदिन के लिए 100 से अधिक लोगों को निमंत्रित किया। उन्होंने बताया कि जन्मदिन के लिए बिना अंडे वाला वनीला केक का ऑर्डर दिया था। गेस्ट जूली के लिए के लिए उपहार भी लेकर आए थे। जूली को फल काफी पसंद है इसल

कैसे करे विजयदशमी (दशहरा) की पूजा?

Image
              हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार आश्विन शुक्ल दशमी के दिन विजयदशमी (दशहरा) का त्यौहार मनाया जाता है। इस वर्ष दशहरा 22 अक्टूबर, 2015 को मनाया जाएगा। दशहरे के दिन का विजय मुहूर्त शुभ कार्यों और यात्रा शुरु करने के लिए महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। इस वर्ष यह मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से 2 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।               भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है।                भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्

नवरात्रि महोत्सव - माँ सिद्धिदात्री

Image
               नवरात्रि का नवां दिन माँ  सिद्धिदात्री  का है जिनकी आराधना से व्यक्ति को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है उसे बरे कर्मों से लडऩे की शक्ति मिलती है।  सिद्धिदात्री की आराधना से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कमल के आसान पर विराजमान माँ सिद्धिदात्री के हाथों में कमल, शंख गदा, सुदर्शन चक्र है जो हमें बुरा आचरण छोड़ सदकर्म का मार्ग दिखाता है।                आज के दिन माँ की आराधना करने से भक्तों को यश, बल व धन की प्राप्ति होती है। माँ सिद्धिदात्री का नौंवा स्वरूप हमारे शुभ तत्वों की वृद्धि करते हुए हमें दिव्यता का आभास कराता है। माँ की स्तुति हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करती है हमें सत्कर्म करने की प्रेरणा देती है। माँ की शक्ति से हमारे भीतर ऐसी शक्ति का संचार होता है जिससे हम तृष्णा व वासनाओं को नियंत्रित करके में सफल रहते हैं तथा जीवन में संतुष्टिi की अनुभूति कराते हैं। माँ का दैदीप्यमान स्वरूप हमारी सुषुप्त मानसिक शक्तियों को जागृत करते हुए हमें पर नियंत्रिण करने की शक्ति व सामथ्र्य प्रदान करता है।                 आज के दिन माँ 

नवरात्रि महोत्सव - माँ महागौरी

Image
                माँ दुर्गा की अष्टम शक्ति है महागौरी जिसकी आराधना से उसके भक्तों को जीवन की सही राह का ज्ञान होता है जिस पर चलकर वह अपने जीवन का सार्थक बना सकता है। नवरात्र में मा के इस रूप की आराधना व्यक्ति के समस्त पापों का नाश करती है। व्रत रखकर माँ का पूजन कर उसे भोग लगाएं तथा उसके बाद माँ का प्रसाद ग्रहण करे जिससे व्यक्ति के भीतर के दुराभाव दूर होते हैं।                 माँ दुर्गा का आठवां रूप महागौरी व्यक्ति के भीतर पल रहे कुत्सित व मलिन विचारों को समाप्त कर प्रज्ञा व ज्ञान की ज्योति जलाता है। माँ का ध्यान करने से व्यक्ति को आत्मिक ज्ञान की अनुभूति होती है उसके भीतर श्रद्धा विश्वास व निष्ठ की भावना बढ़ाता है।                 नवरात्र के आठवें दिन माँ महागौरी की आराधना की जाती है। आज के दिन माँ की स्तुति से समस्त पापों का नाश होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ ने कठिन तप कर गौर वर्ण प्राप्त किया था। माँ की उत्पत्ति के समय इनकी आयु आठ वर्ष की थी जिस कारण इनका पूजन अष्टमी को किया जाता है। माँ अपने भक्तों के लिए अन्नपूर्णा स्वरूप है। आज ही के दिन कन्याओं के पूजन का विधा

नवरात्रि महोत्सव - माँ कालरात्रि ( शुभंकारी )

Image
                माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि एवं शुभांकरी के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।                   इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एक दम काला हैं । सर के बाल बिखरे हुए हैं ।गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है । इनके तीन नेत्र है । ये तीनो नेत्र ब्रम्हांड के सदृश्य गोल है । इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणे प्रकाशित होती रहती है । इनकी नासिका के श्वास प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती है । इनका वाहन गधा है । ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा सभी को वर प्रदान करती है । दाहिने तरफ के नीचे वाले हाथ अभय मुद्रा में है । बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे क

नवरात्रि महोत्सव - माँ कात्यायनी

Image
                 माँ दुर्गा जी के छठवें स्वरुप का नाम कात्यायनी है ! कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे ! उनके पुत्र - ऋषि कात्य हुए ! इन्ही कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे ! इन्होने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी ! उनकी इच्छा थी की माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें ! माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी ! कुछ काल पश्चात जब दानव महिसासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया तब भगवान् ब्रह्मा , विष्णु , महेश तीनो ने अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया ! महर्षि कात्यायन ने सर्व प्रथम इनकी पूजा की ! इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाई !                    ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के यहाँ पुत्री रूप से उत्पन्न भी हुई थी ! आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी , अष्टमी , तथा नवमी तक तीन - दिन इन्होने कात्यायन ऋषि कि पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था ! माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी है ! भगवान् कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपि

नवरात्रि महोत्सव - माँ स्कंदमाता

Image
                नवरात्र के पांचवे दिन माँ  स्कंदमाता की पूजा होती है। पौराणिक कथानुसार भगवती स्कन्दमाता ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। महादेव की पत्नी होने के कारण माहेश्वरी और अपने गौर वर्ण के कारण गौरी के नाम से भी माता का पूजन किया जाता है। माता को अपने पुत्र से अधिक स्नेह है, और इसी कारण इन्हें इनके पुत्र स्कन्द के नाम से जोड़कर पुकारा जाता है।                                             सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |                                          शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||                  माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां भक्त के सारे दोष और पाप दूर कर देती है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की मा

नवरात्रि महोत्सव - माँ कूष्माण्डा

Image
               नवरात्र-पूजन के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।                कहते हैं जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। सच्चे मन से मां से जो भी मांगो वो जरूर पूरा होता है। आज जातक को मन से मां की पूजा करनी चाहिए जिसके चलते उस पर आने वाले हर संकट को मां उससे दूर कर देंगी।                इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा

नवरात्रि महोत्सव - माँ चंद्रघंटा

Image
               माँ दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं की पूजा-आराधना की जाता है। माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं। इनकी आराधना हमेशा फलदायी है। माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। माँ का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं।                माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूष

नवरात्रि महोत्सव - माँ ब्रह्मचारिणी

Image
                माँ  दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी जिसका दिव्य स्वरूप व्यक्ति के भीतर सात्विक वृत्तियों के अभिवर्दन को प्रेरित करता है। मां ब्रह्मचारिणी को सभी विधाओं का ज्ञाता माना जाता है। मां के इस रूप की आराधना से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम जैसे गुणों वृद्धि होती है।                 ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। मां के इस दिव्य स्वरूप का पूजन करने मात्र से ही भक्तों में आलस्य, अंहकार, लोभ, असत्य, स्वार्थपरता व ईष्र्या जैसी दुष्प्रवृत्तियां दूर होती हैं।                 ब्रहमचारिणी मां दुर्गा को द्वितीय शक्ति स्वरूप है। मां स्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बांए हाथ में कमण्डल लिए हुए सुशोभित है। पैराणिक ग्रंथों के अनुसार यह हिमालय की पुत्री थीं तथा नाराद के उपदेश के बाद यह भगवान को पति के रूप में पाने के लिए इन्होंने कठोर तप किया। जिस कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए 1000 वर्षों तक सिर्फ फल खाकर ही रहीं तथा अगले 3000 वर्ष की तपस्या सिर्फ पेड़ों से ग

नवरात्रि महोत्सव - माँ शैलपुत्री

Image
              नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की।                नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।               एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया