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Showing posts from June, 2016

थाईलैंड में आज भी राम का राज्य है !

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               दुनिया का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो भगवान राम के बारे में नहीं जनता हो। सभी भारतीय धर्मग्रंथों में राम का नाम आदर से लया गया है। राम के बिना हिन्दू धर्म और संस्कृति अधूरी है। जैसे हिन्दू समझते हैं कि भगवान राम का इतिहास उनके बाद पूरा हो गया , या जो टी वी सीरियल में दिखाया जाता है , वही राम का इतिहास है , लेकिन ऐसे लोगों को यह जान कर प्रसन्नता होगी कि भारत के बाहर भी थाईलेंड में आज भी संवैधानिक रूप में राम राज्य है , और वहां भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट " भूमिबल अतुल्य तेज " राज्य कर रहे हैं , जिन्हें नौवां राम ( Rama 9th ) कहा जाता है। 1-भगवान राम का संक्षिप्त इतिहास वाल्मीकि रामायण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ एक ऐतिहासिक ग्रन्थ भी है , क्योंकि महर्षि वाल्मीकि राम के समकालीन थे। रामायण के बालकाण्ड के सर्ग ,70 . 71 और 73 में राम और उनके तीनों भाइयों के विवाह का वर्णन है , जिसका सारांश है :-  मिथिला के राजा सीरध्वज थे , जिन्हें लोग विदेह भी कहते थे उनकी पत्नी का नाम सुनेत्रा ( सुनयना ) था , जिनकी पुत्री सीता जी थीं , जिनका विवा

भगवान शिव हैं योग के प्रवर्तक !

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                योग का संदेश है कि किसी इनसान की सेहत और उसका कल्याण उस इनसान के हाथ में ही रहे। इनसान यह इंतजार न करे कि कोई आसमानी शक्ति, कोई नेता, संगठन या बाहरी दुनिया की कोई ताकत आकर उसके स्वास्थ्य की देखभाल और उसका कल्याण करेगी। इनसानी जीवन का अनुभव अपने भीतर से ही पैदा होना चाहिए. आपके जीवन के अनुभव किस तरह के और किस स्तर के हों, योग के जरिए यह आप खुद तय कर सकते हैं।                   भारत में आध्यात्मिक प्रगति की बात करें तो हर किसी का एक ही लक्ष्य रहा है- मुक्ति। कभी सोचा है, ऐसा क्यों है? दरअसल, इस देश में आध्यात्मिक विकास और मानवीय चेतना को आकार देने का काम सबसे ज्यादा एक ही शख्सीयत के कारण है। जानते हैं कौन है वह? वह हैं भगवान शिव। आदियोगी शिव ने ही इस संभावना को जन्म दिया कि मानव जाति अपने मौजूदा अस्तित्व की सीमाओं से भी आगे जा सकती है. सांसारिकता में रहना है, लेकिन इसी का होकर नहीं रह जाना है।                  योग विद्या के मुताबिक 15 हजार साल से भी पहले शिव ने सिद्धि प्राप्त की और हिमालय पर एक प्रचंड और भाव-विभोर कर देने वाला नृत्य किया। वे कुछ देर परमानंद में नृत्य

पुराणों की संख्या इसीलिए होती है अठारह

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                ऐसा माना जाता है कि सभी मन्वंतरों के प्रत्येक द्वापर में भगवान विष्णु ने ही महर्षि व्यास के रूप में प्रकट होकर जनमानस के कल्याण के लिए इन अठारह पुराणों की रचना की है। कहते हैं इन अठारह पुराणों के पढ़ने या सुनने से मनुष्य पापरहित होकर पुण्य का भागी बन जाता है। ये हैं 18 पुराण और उनके श्लोकों की संख्या                 ब्रह्म पुराण- दस हजार, पद्म पुराण- पचपन हजार, विष्णु पुराण-तेईस हजार, शिव पुराण-चौबीस हजार, श्रीमद्भागवद् पुराण-अठारह हजार, नारद पुराण-पच्चीस हजार,मार्कण्डेय पुराण- नौ हजार, अग्नि पुराण- पन्द्रह हजार चार सौ, भविष्य पुराण- चौदह हजार पांच सौ, ब्रह्मवैवर्त पुराण-अठारह हजार, लिंग पुराण-ग्यारह हजार, वराह पुराण-चौबीस हजार, स्कंद पुराण-इक्यासी हजार एक सौ, वामन पुराण- दस हजार, कुर्म पुराण-सत्रह हजार, मत्स्य पुराण-चौदह हजार, गरुड़ पुराण-उन्नीस हजार, ब्रह्माण्ड पुराण- बारह हजार।                 महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों के अतिरिक्त कुछ उप पुराणों की भी रचना की है। उप पुराणों को पुराणों का संक्षिप्त रूप कहा जाता है। उप पुराणों की संख्या 16 है जो क

कुंडलिनी : मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना

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               कुंडलिनी जाग्रत करने का अर्थ है मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना। यह शक्ति सभी मनुष्यों में होती है लेकिन सुप्त (सोई हुई) पड़ी रहती है। कुण्डली शक्ति उस ऊर्जा का नाम है जो हर मनुष्य में जन्मजात पाई जाती है। यह शक्ति बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य को प्राप्त है। इसे जगाने के लिए प्रयास या साधना करनी पड़ती है। ठीक उसी तरह जिस प्रकार एक बीज में वृक्ष बनने की शक्ति या क्षमता होती है। हर मनुष्य में शक्तिशाली बनने की क्षमता होती है।                कुंडली जाग्रत करने के लिए साधक को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर साधना करनी पड़ती है। जप, तप, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, योग आदि के माध्यम से साधक अपनी शारीरिक एवं मानसिक, अशुद्धियों, कमियों और बुराइयों को दूर कर सोई पड़ी शक्तियों को जगाता है।                योग और अध्यात्म की भाषा में इस कुंडलीनी शक्ति का निवास रीढ़ की हड्डी के समानांतर स्थित छ: चक्रों में माना गया है। कोई जीव उन शक्ति केंद्रों तक पहुंच सकता है। इन छ: अवरोधों को आध्यात्मिक भाषा में षट्-चक्र कहते हैं। ये चक्र क्रमशः मूलधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक

क्या आप अपना धर्म जानते है?

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               धर्म का अर्थ है, इस ब्रह्माण्ड के नियमों के अनुसार अपना जीवन बिताना। जानते हैं कुछ सरल चीजें जिन्हें धर्म की तरह अपना कर हम ब्रह्माण्ड के साथ तालमेल में आ सकते है। अगर आप दिल से इस जगत के नियमों का पालन करेंगे, तो आप जबर्दस्त तरीके से काम करेंगे। अभी आप न तो शरीर में अच्छा महसूस करते हैं और न ही मन में क्योंकि आप इस सृष्टि के मूल नियमों का अनजाने में ही सही, लेकिन पालन नहीं करते।                अगर आप सोचते हैं कि आपने बात को समझ लिया है तो धर्म आपके लिए काम नहीं करने वाला है। यह तो उसके लिए काम करेगा, जो इसका प्रयोग करेगा, जो वैसा ही हो जाएगा।                 मैं आपको कोई नागरिक संहिता या नियम-कानून का पाठ नहीं पढ़ा रहा हूं, यह धर्म है। अगर आप इसे अपना लेते हैं, तो आप इस ब्रह्मांड के साथ संरेखित यानी इस सृष्टि के साथ लयबद्ध हो जाएंगे। इसका संबंध ब्रह्मांड के कानून से है, दुनिया के धर्म से है क्योंकि आप जो कुछ भी करते हैं, वह बाकी जगत के साथ बड़ी गहराई से जुड़ा है, चाहे वह आपका सांस लेना हो, चाहे वह आपके दिल का धड़कना हो या आपके शरीर का काम करना। अगर आप दिल से इस जगत के

ॐ के 11 शारीरिक लाभ !

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              ॐ तीन अक्षरों से बना है-अ उ म् । "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना। "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास। "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। जानीए ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग... 01. ॐ और थायराॅयडः- ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। 02. ॐ और घबराहटः- अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं। 03. ॐ और तनावः- यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है। 04. ॐ और खून का प्रवाहः- यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है। 05. ॐ और पाचनः- ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है। 06. ॐ लाए स्फूर्तिः- इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है। 07. ॐ और थकान:- थकान से बचान

कैसे हिंदुओं को जाति में बांटा गया?

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                 जातिवाद से संबंधित संघर्ष भारत में आए दिन होता ही रहता है, लेकिन भारतीय मुसलमान, हिन्दू और अन्य यह नहीं जानते हैं कि यह सब आखिर क्यों हो रहा है। धर्म के लिए, राज्य के लिए या किसी और के लिए। यदि भारतीय मुसलमान और हिन्दू अपने देश का पिछले 1000 वर्षों के इतिहास का गहन अध्ययन करें तो शायद पता चलेगा कि हम क्या थे और अब क्या हो गए।                   वर्तमान में भारत की राजनीति हिन्दुओं को आपस में बांटकर सत्ता का सुख भोगने में कुशल हो चुकी है। ये बांटने वाले लोग कौन हैं? इतिहास में या कथाओं में वही लिखा जाता है जो 'विजयी' लिखवाता है। हम हारी हुई कौम हैं। अपने ही लोगों से हारी हुई कौम। हमें किसी तुर्क, ईरानी, अरबी, पुर्तगाली, फ्रांसिस या अंग्रेजों ने नहीं अपने ही लोगों ने बाहरी लोगों के साथ मिलकर हराया है। क्यों?                    प्राचीन काल में धर्म से संचालित होता था राज्य। हमारे धर्म ग्रंथ लिखने वाले और समाज को रचने वाले ऋषि-मुनी जब विदा हो गए तब राजा और पुरोहितों में सांठगाठ से राज्य का शासन चलने लगा। धीरे-धीरे अनुयायियों की फौज ने धर्म को बदल दिया। बौद्ध का

सबसे पहले भगवान शिव ने किया था हठ योग !

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               योग करने के अलग-अलग स्टाइल हैं और हर एक स्टाइल के अपने ढरों फायदे हैं। ऐसा ही है कुछ 'हठ योग', इसके नाम की ही तरह इस योग की कई ऐसी खूबियां भी हैं जो इसे दूसरे योगासनों से काफी अलग बनाती हैं। आइए जानते हैं हठ योग से जुड़ी कुछ अनूठी बातें...                हठयोग साधना की मुख्य धारा शैव रही है और बाद में इसे सिद्धों और नाथों ने अपनाया। बताया जाता है कि मत्स्येन्द्र नाथ और गोरख नाथ हठ योग के प्रमुख आचार्य माने गए हैं। साथ ही कहा जाता है कि गोरखनाथ के अनुयायी प्रमुख रूप से हठयोग की साधना करते थे और उन्हें नाथ योगी भी कहा जाता है। इसके अलावा शैव धारा के अतिरिक्त बौद्धों ने भी हठयोग की पद्धति अपनायी थी।                 कुछ मान्‍यताओं के मुताबिक हठ योग को सबसे पहले भगवान शिव ने किया था। इस योगासन को भारतीय योग की सबसे प्राचीन विधा माना जाता है और कई सदियों से भारत के योगियों का द्वारा इसका अभ्यास भी किया गया है।                  हठ योग को नियमित रूप से करने से ढेरों फायदें होते हैं। ये आपके शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है और टॉक्सिंस को शरीर से बाहर का रास्ता

भगवान शिव-पार्वती की हैं एक पुत्री !

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                भगवान शिव की एक पुत्री भी थीं। जिनका नाम था 'अशोक सुंदरी' इनका विवाह राजा नहुष से हुआ था। अशोक सुंदरी देवकन्या हैं, इस बात का उल्लेख पद्मपुराण में मिलता है, अशोक सुंदरी को भगवान शिव और पार्वती की पुत्री बताया गया है।                  दरअसल माता पार्वती के अकेलेपन को दूर करने हेतु कल्पवृक्ष नामक पेड़ के द्वारा ही अशोक सुंदरी की रचना हुई थी। पद्म पुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती विश्व में सबसे सुंदर उद्यान में जाने के लिए भगवान शिव से कहा। तब भगवान शिव पार्वती को नंदनवन ले गए, वहां माता को कल्पवृक्ष से लगाव हो गया और उन्‍होंने उस वृक्ष को लेकर कैलाश आ गईं।                  कल्पवृक्ष मनोकामना पूर्ण करने वाला वृक्ष है, पार्वती ने अपने अकेलेपन को दूर करने हेतु उस वृक्ष से यह वर मांगा कि उन्‍हें एक कन्या प्राप्त हो, तब कल्पवृक्ष द्वारा अशोक सुंदरी का जन्म हुआ। माता पार्वती ने उस कन्या को वरदान दिया कि उसका विवाह देवराज इंद्र जैसे शक्तिशाली युवक से होगा।                   एक बार अशोक सुंदरी अपने दासियों के साथ नंदनवन में विचरण कर रहीं थीं तभी वहां हुंड नामक राक्

अल्बर्ट आइंस्टीन से पहले भगवान शिव ने बताया था यह रहस्य

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               प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन से पहले भगवान शिव ने कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। यानी हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसा ही हमारे साथ घटित होता है। भोलेनाथ ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शंकर के इसी दर्शन को दुनिया के लगभग हर धर्म के अनुयायी मानते हैं और उनके ग्रंथों में इस बात को अलग-अलग तरीके से बताया गया है।                हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वर्तमान समय से हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने मृत्युलोक यानी हमारी धरती पर कदम रखे, तब धरती पर हिमयुग था। मान्यता है कि इस समय भगवान शिव, कैलाश पर्वत पर निवास करते थे। भगवान विष्णु ने समुद्र और ब्रह्मा ने नदी के किनारे को अपना निवास स्थान बनाया।                कहते हैं जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था।                वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की

भगवान शिव का ये मंदिर दिन में दो बार गायब हो जाता है !

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               वडोदरा से कुछ दूरी पर एक ऐसा मंदिर है जो दिन में दो बार नजरों से ओझिल हो जाता है। यह मंदिर जंबूसर तहसील के कावी कंबोई गांव में है। यह मंदिर भगवान शिव का है। स्तंभेश्वर नाम का यह मंदिर दिन में दो बार सुबह और शाम को पलभर के लिए ओझल हो जाता है। ओझल होने के बाद कुछ देर बाद यह अपनी जगह पर वापस जाता है। ऐसा ज्वार-भाटा उठने के कारण होता है। इसके चलते आप मंदिर के शिवलिंग के दर्शन तभी कर सकते हैं, जब समुद्र में ज्वार कम हो।    ज्वार में शिवलिंग हो जाता है जलमग्न                 आप जानकर हैरान होंगे कि ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। उन हालातों में इस मंदिर तक कोई व्यक्ति नहीं पहुंच सकता। यह आज से बरसों से होता आ रहा है। अरब सागर के मध्य कैम्बे तट पर स्थित मंदिर में सागर में समाने से पहले भक्तों की भीड़ लगी रहती है। मान्यता पौराणिक कथाओ के अनुसार :-                 स्कंदपुराण के अनुसार शिव के पुत्र कार्तिकेय छह दिन की आयु में ही देवसेना के सेनापति नियुक्त कर दिये गये थे | इस समय ताड़कासुर नामक दानव ने देवताओं को आतंकित कर रखा था | देवता, ऋषि-मुनि और आमजन स

धन पाने का सबसे पुराना ऋग्वेद मंत्र

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             हम सभी धन चाहते हैं। यह कामना सदियों पहले भी इंसान में थी। आइए जानते हैं धन प्राप्ति का सबसे पुराना मंत्र कौन सा है, और यह किस वेद में लिखा है... ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर।  भूरिरेदिन्द्र दित्ससि।  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्।  आ नो भजस्व राधसि।।´ भावार्थ              हे लक्ष्मीपते ! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसार भर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं - उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान, मुझे अर्थ संकट से मुक्त कर दो। इस मंत्र का प्रात:काल प्रतिदिन दीपक जलाकर जाप करने से आर्थिक संकटों से राहत मिलती है।

मंदिरों में क्यों नहीं होती महिला पुजारिन ?

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                भारत में अधिकांश मंदिरों की देखभाल पुरुष पुजारी करते हैं, बहुत कम मंदिरों में पुजारिनें होती हैं। ऐसा क्यों? शायद स्त्रियां पुरुषों की देखभाल कर रही हैं! इस देश में, केवल सार्वजनिक मंदिरों की देखभाल पुरुष करते थे, क्योंकि जनता को संभालने के लिए वे अधिक उपयुक्त थे। पर ऐसा कोई घर नहीं था, जहां कोई छोटा-मोटा मंदिर न हो, और इन निजी मंदिरों की देखभाल हमेशा स्त्रियां करती थीं। इसलिए उस अर्थ में, ज्यादातर मंदिरों के प्रबंधन और देखभाल का काम तो पुरुषों से अधिक स्त्रियों के पास था, और अब भी ऐसा ही है।                इस देश में, केवल सार्वजनिक मंदिरों की देखभाल पुरुष करते थे, क्योंकि जनता को संभालने के लिए वे अधिक उपयुक्त थे। पर ऐसा कोई घर नहीं था, जहां कोई छोटा-मोटा मंदिर न हो, और इन निजी मंदिरों की देखभाल हमेशा स्त्रियां करती थीं। इसलिए उस अर्थ में, ज्यादातर मंदिरों के प्रबंधन और देखभाल का काम तो पुरुषों से अधिक स्त्रियों के पास था, और अब भी ऐसा ही है।                अगर मैं एक साइकिल लाऊं, उन्हें एक पाना (स्पैनर) दूं और कहूं कि इस साइकिल के पुर्जे अलग-अलग करके उसे फिर से

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने के ये हैं फायदे

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               आपने लोगों को ये कहते सुना होगा कि तांबे के बर्तन में पानी रखकर पीने के कई फायदे होते हैं। पर शायद आपको पता न हो कि आयुर्वेद भी इसकी पुष्ट‍ि करता है। तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से कई तरह की बीमारियां खुद ही समाप्त हो जाती हैं और कई बीमारियां शरीर में पनपने ही नहीं पाती हैं।                   पिछले कुछ वर्षों में कई प्रयोग हुए हैं और वैज्ञानिकों ने यह मालूम किया है कि पानी की अपनी याददाश्त होती है। यह हर उस चीज को याद रखता है जिसको यह छूता है। हमारी संस्कृति में हमें यह हमेशा से मालूम था और तरह-तरह से इस ज्ञान का हम इस्तेमाल भी करते रहे हैं। हमारी दादियों-नानियों ने हमें बताया था कि हमें हर किसी के हाथ से न तो पानी पीना चाहिए और न ही खाना खाना चाहिए। हमें ये चीजें हमेशा उन्हीं लोगों से ग्रहण करनी चाहिए जो हमसे प्रेम करते हैं और हमारी परवाह करते हैं।                  मंदिरों में वे आपको जल की एक बूंद देते हैं जिसको पाने के लिए अरबपतियों तक में होड़ लगी रहती है, क्योंकि यह जल आप कहीं खरीद नहीं सकते। यह जल ही है जो चैतन्‍य की स्मृति संजोये होता है। यही है ती

कहाँ और किसके घर लेंगे भगवान कल्कि अवतार ?

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               जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है, तब-तब भगवान विष्णु दुष्टों का अंत कर धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। पुराणों के अनुसार, कलयुग के अंत में भगवान विष्णु एक और अवतार लेंगे। भगवान का यह अवतार कल्कि के रूप में प्रसिद्ध होगा। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुनरूस्थापना करेंगे।                भारत में कल्कि अवतार के कई मंदिर भी हैं, जहां भगवान कल्कि की पूजा होती है। यह भगवान विष्णु का पहला अवतार है जो अपनी लीला से पूर्व ही पूजे जाने लगे हैं। जयपुर में हवा महल के सामने भगवान कल्कि का प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था। इस मंदिर में भगवान कल्कि के साथ ही उनके घोड़े की प्रतिमा भी स्थापित है। श्रीमद्भागवत-महापुराण में भगवान के कल्कि अवतार का वर्णन एक श्लोक में किया गया है। सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।। श्लोक का अर्थ-                शम्भल-ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा।

नीम : गुणों का खजाना

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              नीम में इतने गुण हैं कि ये कई तरह के रोगों के इलाज में काम आता है। यहाँ तक कि इसको भारत में ‘गांव का दवाखाना’ कहा जाता है। यह अपने औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेदिक मेडिसिन में पिछले चार हजार सालों से भी ज्यादा समय से इस्तेमाल हो रहा है। नीम को संस्कृत में ‘अरिष्ट’ भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है, ‘श्रेष्ठ, पूर्ण और कभी खराब न होने वाला।’               नीम के पत्ते भारत से बाहर 34 देशों को निर्यात किए जाते हैं। इसके पत्तों में मौजूद बैक्टीरिया से लड़ने वाले गुण मुंहासे, छाले, खाज-खुजली, एक्जिमा वगैरह को दूर करने में मदद करते हैं। इसका अर्क मधुमेह, कैंसर, हृदयरोग, हर्पीस, एलर्जी, अल्सर, हिपेटाइटिस (पीलिया) वगैरह के इलाज में भी मदद करता है। लेकिन इन सबके अलावा भी नीम के कुछ गुण हैं जो हमारी सेहत के लिए बहुत लाभदायक हैं. 1. नीम की पत्तियां फंगल संक्रमण से बचाती हैं और एथलीट फुट, दाद-खाज के इलाज में इसका प्रयोग बहुत प्रभावी है. साथ ही मुंह, योनि और त्वचा के संक्रमण में भी से भी यह छुटकारा दिलाती है. 2. नीम की पत्तियां दंत रोगों और पेट के संक्रमण से लड़ने में भी काफी प्रभ

क्या आपने जामुनी आम देखा है ?

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               सोशल मीडिया पर इन दिनों जामुनी आम की एक नकली फोटो काफी वायरल हो रही है। इसे कई लोग लिखे और शेयर कर रहें है। ऐसे कहा जा रहा है कि इस आम को १० साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया गया है। पर वैज्ञानिकों का कहना है कि ये फोटो नकली'है क्योंकि आम की ईएसआई कोई प्रजाति नहीं होती।

भृगु संहिता - मनुष्य जीवन के भाग्योदय का राज

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               भाग्य या किस्मत का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव होता है। सुख-दुख, सफलता-असफलता, अमीरी-गरीबी सभी को अक्सर भाग्य से जोड़कर देखा जाता है। हालांकि शास्त्र कहते हैं कि भाग्य बड़ा प्रबल है, मगर पुरुषार्थ द्वारा भाग्य को भी बदला जा सकता है। भृगु संहिता एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें ज्योतिष संबंधी समस्त जानकारियां दी गई हैं। इसकी रचना ऋषि भृगु ने की थी। इसमें कुंडली के लग्न के अनुसार बताया गया है कि व्यक्ति का भाग्योदय कब होगा।                सभी लोग जानना चाहते हैं कि हमारा अच्छा समय कब आएगा? कब हमारे पास बहुत सारा पैसा होगा? इन प्रश्नों के उत्तर भृगु संहिता में बताए गए हैं। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें ज्योतिष संबंधी समस्त जानकारियां दी गई हैं। इस संहिता में कुंडली के लग्न के आधार पर भी बताया गया है कि व्यक्ति का भाग्योदय कब हो सकता है। ऋषि भृगु की ख्याति एक ऐसे कालातीत भविष्यवक्ता के रूप में है जो भूत, भविष्य और वर्तमान पर समान दृष्टि रखते थे। वह समय की मोटी दीवार के आर-पार ऐसे देख सकते थे जैसे किसी पारदर्शी कांच में से देख रहे हों। उन्होंने प्रमाणित किया है कि कुंडली के लग्न को देखक

दशानन रावण की 10 आश्चर्यजनक बातें !

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                   रामायण में रावण को नकारात्मक चरित्र में प्रदर्शित किया गया है। उसे अधर्मी और अराजकता के प्रतीक के तौर पर दिखाया गया है। लेकिन प्रचलित रामायण विभिन्न स्वरूपों में से कुछ में रावण को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसे महाज्ञानी, वीर योद्धा और अपने समुदाय और देश के लोगों के लिए लड़ने वाला बताया गया है। आइये जानते हैं दशानन रावण की ऐसी ही दस बातें... 1. वेद और संस्कृत का ज्ञाता: रावण को वेद और संस्कृत का परम ज्ञान था। साम वेद में निपुणता के अलावा उसे बाकी तीनों वेदों का भी ज्ञान था। उसने शिव तांडव, युद्धीशा तंत्र और प्रकुठा कामधेनु जैसी कृतियों की रचना की। इतना ही नहीं पद पथ (वेदों को पढ़ने का एक तरीका) में भी उसे महारत हासिल थी। 2. आयुर्वेद का ज्ञान: आयुर्वेद के क्षेत्र में भी रावण का अप्रतिम योगदान है। उसने अर्क प्रकाश नाम से एक पुस्तक की भी रचना की थी जिसमें आयुर्वेद से जुड़ी काफी अहम जानकारियों को शामिल किया था। 3. कविताएं लिखने में भी पारंगत: रावण एक महान योद्धा तो था ही, सौंदर्य बोध में भी उसके भीतर कूट-कूट कर भरा था। रावण ने कई कविताओं और

हिन्दू धर्म कब शुरू हुआ ?

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              हिन्दू मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं। लेकिन समय की अवधारणा हिन्दू धर्म में अन्य धर्मों की अपेक्षा बहुत अलग है। प्राचीनकाल से ही हिन्दू मानते आए हैं कि हमारी धरती का समय अन्य ग्रहों और नक्षत्रों के समय से भिन्न है, जैसे 365 दिन में धरती का 1 वर्ष होता है तो धरती के मान से 365 दिन में देवताओं का 1 'दिव्य दिन' होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रों पर दिन और वर्ष का मान अलग अलग है।               हिन्दू काल निर्धारण अनुसार 4 युगों का मतलब 12,000 दिव्य वर्ष होता है। इस तरह अब तक 4-4 करने पर 71 युग होते हैं। 71 युगों का एक मन्वंतर होता है। इस तरह 14 मन्वंतर का 1 कल्प माना गया है। 1 कल्प अर्थात ब्रह्माजी के लोक का 1 दिन होता है।               विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। 1 मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष। ..

हिन्दू धर्म अनुसार जीव विकासक्रम की उत्पत्ति का रहस्य !

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              डार्विन की एक प्रसिद्ध किताब का नाम है Origin of Species (प्रजाति की उत्पत्ति)। इस किताब को डार्विन ने अपने थका देने वाले शोध और दुनियाभर के द्वीपों की प्रजातियों का अध्ययन करने के बाद लिखा था। इस किताब का ईसाई धर्म और उससे जुड़ी विचारधारा ने घोर विरोध किया, क्योंकि उनके अनुसार डार्विन का शोध धर्म के खिलाफ था। यह किताब जीव विकास क्रम का धर्म में उल्लेखित सिद्धांत का विरोध करती है। धर्म अनुसार ईश्वर ने मानव को मिट्टी से डायरेक्ट बनाया है। मानव क्रम विकास से नहीं बना। उत्पत्ति-1 हम विज्ञान के क्रम विकास के सिद्धांत की बात करते हैं। विज्ञान मानता है कि मछली की उत्पत्ति धरती पर जीव विकासक्रम में पहली ऐसी बड़ी घटना थी जिसने जीव विकास के चक्र को और तेज कर दिया। सबसे पहले जलीय जीव (Aquatic Organism) आए। समुद्र में जलीय जीव की उत्पत्ति में लाख-करोड़ साल का वक्त लगा, इससे पहले तो समुद्र में भिन्न भिन्न जलीय पेड़-पौधे थे। विज्ञान ने मछलियों की विशेष प्रजातियों को नाम दिया- chordates fish (अकशेरुकी)। हालांकि मछली की कई प्रजातियां मेरूदंडी थी, लेकिन यह कुछ अलग थीं जिसके क