Posts

Showing posts from July, 2016

रामायण के इस कांड का नाम सुंदरकाण्ड ही क्यों रखा गया ?

Image
                श्रीरामचरित मानस में कुल 7 काण्ड (अध्याय) हैं। सुंदरकाण्ड के अतिरिक्त सभी अध्यायों के नाम स्थान या स्थितियों के आधार पर रखे गए हैं। बाललीला का बालकाण्ड, अयोध्या की घटनाओं का अयोध्या काण्ड, जंगल के जीवन का अरण्य काण्ड, किष्किंधा राज्य के कारण किष्किंधा काण्ड, लंका के युद्ध की चर्चा का लंका काण्ड और जीवन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर उत्तरकाण्ड में दिए गए हैं।                 माना जाता है कि सुंदरकाण्ड के पाठ से बजरंग बली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है। जो लोग नियमित रूप से इसका पाठ करते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता की खोज की है। इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है। हनुमान जी की सफलता के लिए सुंदरकाण्ड को याद किया जाता है। श्रीरामचरित मानस के इस पांचवें अध्याय को लेकर लोग अक्सर चर्चा करते हैं कि इस अध्याय का नाम सुंदरकाण्ड ही क्यों रखा गया है?                  हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटाचल पर्वत यानी यहांं 3 पर्वत थे।

एक फूल जिसमें विराजमान रहते हैं भोलेनाथ !

Image
                 वैसे तो भारत की संस्कृति में हर फूल का अपना एक अलग महत्व है प्राचीन काल से फूल किसी ना किसी देवी देवता के प्रिय माने जाते रहे हैं। ऐसे ही फूलों में एक ऐसा फूल है जो देवों के देव महादेव का ना केवल प्रिय है, बल्कि शिव खुद उस फूल में विराजमान रहते हैं। इस फूल को शिवलिंगी फूल भी कहा जाता है। इस फूल का आधार कमल दल के समान है। उसके ऊपर सर्प का मुख और मुख के अंदर शिवलिंग नजर आता है।                  दुमका जिला के जरमुंडी स्थित बासुकीनाथ मंदिर से सटे दारूक वन में इस फूल के कई पेड़ हैं। लोग बड़ी श्रद्धा से इस फूल को तोड़कर महादेव पर चढ़ाते हैं। सबसे बात ये हे कि बरसात के मौसम में ही यह फूल खिलता है इसलिए सावन महीने में इस फूल की महत्ता और बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस फूल को चढ़ाने से भोले बाबा अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।                  बासुकीनाथ स्थित फौजदारी बाबा के मंदिर से सटे दारूक वन का अलग ही इतिहास है। जनश्रुति के अनुसार प्राचीन काल में दारूक तथा दारूका नामक राक्षस – राक्षसी इस वन में निवास करते थे। दारूक ने एक शिव भक्

लक्ष्मण ने रावण से क्या सीख ली ?

Image
                  प्रभु श्रीराम के तीर से जब रावण धरती पर गिर गया, तब श्रीराम ने लक्ष्मण से उसके पास जाकर शिक्षा लेने को कहा। श्रीराम की यह बात सुनकर लक्ष्मण चकित रह गए। भगवान श्रीराम ने लक्ष्‍मण से कहा कि इस संसार में नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित रावण अब विदा हो रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता।                   श्रीराम की बात मानकर लक्ष्मण रावण के नजदीक सिर के पास जाकर खड़े हो गए, लेकिन रावण ने कुछ नहीं कहा। लक्ष्मण ने लौटकर प्रभु श्रीराम से कहा कि वे तो कुछ बोलते ही नहीं। तब श्रीराम ने कहा यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना है तो उसके चरणों के पास हाथ जोड़कर खड़े होना चाहिए, न कि सिर के पास।                   श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, जाओ और रावण के चरणों के पास बैठो। यह बात सुनकर लक्ष्मण इस बार रावण के चरणों में जाकर बैठ गए। इस पर रावण ने लक्ष्मण को यह तीन बातें कही। शुभस्य शीघ्रम : लक्ष्मण को अपने चरणों में बैठा देख महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताईं, जो कि जीवन में सफलता की कुंजी है। पहली बात जो लक्ष्मण को

आइये जानते हैं चप्पल का इतिहास

Image
                चप्पल ने दुनिया भर में आम जिंदगी को बेहद आसान बनाया है। घर पर या बाहर कहीं भी जाना हो, फटाक से चप्पल पहनी और चल दिये। चप्पल आज दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने और इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट्स में शामिल है। हर साल 20 करोड़ से ज्यादा हवाई चप्पलें बनती हैं। चप्पल फैशन से कभी बाहर नहीं निकली। हर बार कुछ सालों के बाद नए लुक की चप्पल आती है. बाथरूम जाना हो, टहलना हो या फिर दफ्तर या पार्टी में जाना हो, अब हर मौके के लिए खास चप्पलें हैं। तो आइये जानते हैं चप्पल का इतिहास और अपने इस हमसफ़र को थोड़ा नज़दीक से जानते हैं।                   शोधकर्ताओं का मानना है कि चप्पल का आविष्कार 4,000 ईसा पूर्व में मिस्र में हुआ। धीरे धीरे यह दुनिया के दूसरे हिस्सों में फैली. प्राचीन मिस्रवासियों ने पेड़ की छाल और लकड़ी का इस्तेमाल कर चप्पल बनाई। मिस्र से निकली चप्पल अलग अलग इलाकों में बदलती गई। प्राचीन भारत में लकड़ी की चप्पल बनाई गई, जिन्हें चरण पादुका भी कहा जाता है। वहीं अफ्रीका के मसाई समुदाय ने जानवरों की चमड़ी से चप्पल बनाई। अमेरिकी महाद्वीप के मूल निवासियों ने पेड़ का छाल का इस्तेमाल किय

भगवान राम के जन्म और समय का पता चला !

Image
               भगवान श्रीराम का जन्मदिन 'रामनवमी' पर मनाने के लिए अब आपको सिर्फ हिंदू पंचाग के ही भरोसे रहने की जरूरत नहीं। एक साइंटिफिक रिसर्च में श्रीराम के जन्म के दिन और समय का पता लगाने का दावा किया गया है। वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान की इस रिसर्च के दावों पर अगर यकीन करें तो अयोध्या के राजा श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व 10 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 5 मिनट पर हुआ था।                इकॉनोमिक्स टाइम्स की खबर के मुताबिक रिसर्च में सिर्फ राम के जन्म का ही समय नहीं बताया गया है बल्कि महाभारत के युद्ध का वक्त और अशोक वाटिका में सीता से हनुमान के मिलने के समय का भी उल्लेख किया गया है।                बड़े-बड़े इतिहासकारों के लिए अभी तक महाभारत और रामायण की घटनाओं के बिल्कुल सही समय का पता लगाना असंभव रहा है, लेकिन एक इंस्टीट्यूट ने तारीखों के साथ समय का खुलासा करते हुए कहा है कि महाभारत का युद्ध 3139 ईसा पूर्व 13 अक्टूबर को शुरू हुआ था।                वहीं, रिसर्च में बताया गया है कि 5076 ईसा पूर्व 12 सितंबर को अशोक वाटिका में माता सीता से हनुमान की मुलाकात हुई थी। इस प्रदर्शनी

भगवान शिव से सीखें ये 7 सबक

Image
                          भगवान शिव को देवों के देव का कहा जाता है। महादेव का एक रूप ताडंव करते नटराज का है तो दूसरा रूप महान महायोगी का है। ये दोनों ही रूप रहस्‍यों से भरे हैं, लेकिन शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। जहां एक साथ इतने सारे रंग हो फिर क्‍यों न अपनी जिंदगी में इन रंगों से प्रेरणा लें। 1. बुराई को खत्‍म करना ब्रह्मा उत्‍पत्ति के लिए और विष्‍णु रचना के लिए और शिव को विनाश के लिए जाना जाता है। शिव का यह रूप आपको डराने वाला लग सकता है लेकिन किसी बुराई का खत्‍म होना बेहद जरूरी होता है और शिव इसी के लिए जाने जाते हैं। 2. शांत रहकर खुद पर नियंत्रण रखना  शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। किसी परिस्थिति से खुद को दूर रखते हुए उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता है। महादेव एक बार ध्‍यान में बैठ जाएं तो दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन उनका ध्‍यान कोई भंग नहीं कर सकता है। शिव का यह ध्‍यान हमें जीवन की चीजों पर नियंत्रण रखना सिखाती है। 3. नकारात्‍मक चीजों को भी सकारात्‍मक होकर लेना समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे क्‍योंकि विष कोई नहीं पी सकता था। ऐस

शिव के लिंग रूप की पूजा क्यों की जाती है ?

Image
               भगवान शिव आदि और अंत के देवता है और इनका न कोई रूप और न ही आकार। आदि और अंत न होने से लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है, जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है। शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं. 'शिव' का अर्थ है– 'परम कल्याणकारी' और 'लिंग' का अर्थ है – ‘सृजन’. शिव के वास्तविक स्वरूप से अवगत होकर जाग्रत शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण।                 वेदों में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है. मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु. वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है।                 जब समुद्र मंथन के समय सभी देवता अमृत के आकांक्षी थ

भगवान शिव को इसलिए प्रिय है श्रावण माह

Image
              श्रावण मास भक्ति के लिए सर्वोत्तम है। इस महीने में जो भी भक्ति भाव के साथ शिवजी की आराधना करता है वह उनकी कृपा प्राप्त करता है। मात्र बिल्व पत्र और जलाभिषेक से इस माह में शिव की अनुकंपा प्राप्त की जा सकती है। यह जगत भगवान शिव की ही सृष्टि है। शिव का अर्थ ही है परम कल्याणकारी। वे ऐसे देव हैं जो लय और प्रलय को अपने अधीन किए हैं। शिव ऐसे देव हैं जिनमें परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है।               उनके मस्तक पर चंद्र है तो गले में विषधर। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। देवशयनी ग्यारस के साथ ही जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं तो शिव सृष्टि के पालनकर्ता की भूमिका संभालते हैं। यही वजह है कि श्रावण में भगवान भोलेनाथ की आराधना की जाती है। उनकी स्तुति से दिशाएं गुंजायमान रहती हैं। जप, तप और व्रत के लिए सर्वोत्तम               पूर्णमासी को श्रवण नक्षत्र का योग होने के कारण यह मास श्रावण कहलाता है। इस मास की संपूर्ण कला केवल ब्रह्मा जी ही जानते हैं। इस मास के पूरे तीस दिन जप, तप, व्रत व पुण्य कार्यों के लिए उत्तम माने गए हैं। शिवजी को

एडिसन के ग्रामोफोन पर पहली बार गूंजा था संस्कृत श्लोक

Image
                 इतिहास में कुछ ऐसी कहानियां छुपी हुई हैं जो भारत की न होकर फिर भी भारत से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक कहानी है 19वीं सदी में ग्रामोफोन का अविष्कार करने वाले थॉमस अल्वा एडिसन और उसी वक़्त के मशहूर जर्मन स्कॉलर, प्रोफ़ेसर मैक्स मूलर की। मूलर ने ग्रामोफोन पर क्या रिकॉर्ड किया ये जानकार आपको भारतीय होने पर जरूर गर्व महसूस होगा।                  एडिसन ने ग्रामोफोन का अविष्कार तो कर लिया था लेकिन वो चाहते थे कि दुनिया जब इसमें रिकॉर्ड आवाज़ को पहली बार सुने तो वो कोई स्पेशल आवाज़ होनी चाहिए। एडिसन ने इसके लिए चुना प्रोफ़ेसर मैक्स मूलर को। एडिसन ने इसके लिए बाकायदा एक समारोह का आयोजन किया जिसमें पूरे यूरोप और अमेरिका के विद्वान और वैज्ञानिक इकठ्ठा हुए। न्योता पाकर मैक्स मूलर भी जर्मनी से इंग्लैंड पहुंच गए।                  एडिसन ने कार्यक्रम के उताबिक मूलर को स्टेज पर बुलाया और उन्होंने ग्रामोफोन के रिकॉर्ड पर कुछ शब्द कहे। एडिसन ने डिस्क चालू की और पूरा हॉल आश्चर्य से एक -दूसरे कि तरफ देखने लगा। फिर एडिसन की इस खोज के की प्रशंसा के लिए पूरा हॉल तालियों की आवाज़ से गू

पशुपतिनाथ मंदिर मे नंदी के दर्शन नही करना चाहिए आइये जानते है क्यो?

Image
                 भारत सहित पूरी दुनिया में भोलेनाथ के सैकड़ो मंदिर और तीर्थ स्थान मौजूद है। जो अपने चमत्कारों और धार्मिकता के कारण विश्व प्रसिद्ध है। वैसे तो भोलेनाथ के अनेको नाम है। उन्ही में से एक नाम है पशुपति मंदिर। यह मंदिर शिव के 12 ज्योतिर्लिगों में एक माना जाता है। इस मंदिर के बारें में कहा जाता है कि आज भी यहां पर भगवान शिव विराजमान है।                 पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 3 किमी उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है। यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।                 यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है। जानिए इस मंदिर से जुड़े कुछ रहस्यों के बारें में। जिन्हें जानकर आप आश्चर्य चकित हो जाएगे। 1 ) भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित इस मंदिर में दर्शन के लिए हर साल हजारों संख्या में भक्त यहां पर आते है। इ

शिवलिंग क्या है?

Image
                 लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है। शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। पुरुष लिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसक लिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनि नहीं होता ..दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और भ्रमित लोगों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ है। शिवलिंग क्या है ?                 शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्मांड (क्योंकि, ब्रह्मांड गतिमान है) का अक्ष/धुरी ही लिंग है। शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है न ही शुरुआत।                 जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं| यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो। सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य

श्री अमरनाथ से जुड़े कुछ रहस्य

Image
               धरती का स्वर्ग कही जाने वाली कश्मीर घाटी में स्थित श्री अमरनाथ स्वामी की पवित्र गुफा में प्रतिवर्ष बर्फ से बनने वाले प्राकृतिक हिमशिवलिंग की पूजा की जाती है। श्री अमरनाथ धाम में देवाधिदेव महादेव को साक्षात विराजमान माना जाता है। महादेव प्रति वर्ष श्री अमरनाथ गुफा में अपने भक्तों को हिमशिवलिंग के रूप में दर्शन देते हैं। इस पवित्र गुफा में हिमशिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ, एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप में निर्मित होती है। पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है।                इस पवित्र गुफा की खोज बहुत ही नेक और दयालु मुसलमान गडरिए बूटा मलिक ने की थी। वह एक दिन अपनी भेड़ों को चराते-चराते बहुत दूर निकल गया। एक जंगल में पहुंच कर उसकी एक साधु से भेंट हो गई। साधु ने उसे कोयले से भरी एक कांगड़ी दी। घर पहुंच कर बूटा मलिक ने कोयले की जगह सोना पाया तो वह बहुत हैरान हुआ। उसी समय वह साधु का धन्यवाद करने के लिए लौटा परंतु वहां साधु की बजाय एक विशाल गुफा देखी। उसी दिन से यह स्थान एक तीर्थ बन गया। आज भी यात्रा पर आने वाले शिव भक्तों द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे का एक निश्चित हिस

भगवान शिव को क्यों प्रिय है भांग ?

Image
                हिंदू पौराणिक ग्रंथो में भांग की उल्लेख मिलता है। भांग एक नशीला पदार्थ है। जो आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में उपयोग किया जाता है। वेदों के अनुसार समु्द्रमंथन से जब अमृत निकला तो उसकी एक बूंद मद्रा पर्वत पर गिरी थी।                  उस जगह एक पौधे ने जन्म लिया। जिसे भांग का पौधा कहा गया। जब यह पौधा थोड़ा बड़ा हुआ तो इसकी पत्तियों के रस को देवताओं ने पिया। यह रस भगवान शिव को बहुत प्रिय लगा। तभी से उनका यह पसंदीदा पेय बन गया। वजह यह है कि भगवान शिव सन्यासी हैं और उनकी जीवन शैली बहुत अलग है।                 एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भांग, देवी गंगा की बहन हैं। भांग के पौधे को माता पार्वती का स्वरूप भी माना गया है। ऐसी अन्य दंतकथाएं हमारे शास्त्रों में मिलती है। गांजा, धतूरा, भांग जैसी चीजें नशे के साथ ही शरीर को गरमी भी प्रदान करती हैं। जो वहां सन्यासियों को जीवन गुजारने में मददगार होती है। इसके आयुर्वेदिक गुणों के कारण ही इसे शिव से जोड़ा गया है।

रावण ने क्या कहा था बिल्व पत्र के बारे में

Image
               भगवान शिव को बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं ये तो सभी को पता ही है परन्तु क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के अनन्य भक्त रावण ने ज्योतिष विज्ञान पर लिखी अपनी पुस्तक रावण संहिता में बिल्व पत्र का विशेष महत्व बताया है। यह पुस्तक इस समय नेपाल के गुंजेश्वरी में उपलब्ध है। इस पुस्तक में रावण ने एक अध्याय सिर्फ बिल्व पत्र पर ही लिखा है।  रावण संहिता के अनुसार बिल्व पतर की विशेषताएं  बिल्व पत्र के वृक्ष के आसपास कभी सॉंप नहीं आते हैं।  वायुमंडल की अशुद्धियों को सोखने की शक्ति होती है।  बिल्व पत्र भगवान शिव को अर्पण करने से भक्त को अनन्त सौभाग्य और सुख मिलता है।  बिल्व वृक्ष को लगाने से वंश वृद्धि होती है।  बिल्व पत्र के दर्शन मात्र से सभी पापों  का नाश होता है।  बिल्व वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है।  बिल्व वृक्ष लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।  बिल्व पत्र और तमृ धातु के विशेष प्रयोग से स्वर्ण धातु का उत्पादन होता है।  चाहे भूल से ही किंतु शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने से सभी पापों का नाश हो जाता है 

भगवान शिव के तीन नेत्रों का रहस्य

Image
             सभी  देवी देवताओं में केवल भगवान शिव के ही तीन नेत्र है लेकिन क्या आप भगवान भोले के तीनों नेत्रों के रहस्यों के बारे में जानते है ? भगवान भोलेनाथ का एक नाम त्रिलोचन भी है क्योंकि एक मात्र भोले नाथ ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें हैं। शिव के दो नेत्र तो सामान्य रुप से खुलते और बंद होते रहते हैं लेकिन तीसरी आंख शिव जी तभी खोलते हैं जब शिव जी बहुत क्रोधित होते हैं। इस नेत्र के खुलने का मतलब है प्रलय का आगमन।              शिव के तीन नेत्र इस बात के प्रतीक हैं कि शिव ही संसार में व्याप्त तीनों गुण रज, तम और सत्व के जनक हैं। इनकी ही प्रेरणा से रज, तम और सत्व गुण विकसित होते हैं।               शिव का तीसरा नेत्र वास्तव में ज्ञान नेत्र है, जिसके खुलने मात्र से काम भष्म हो जाता है। इसका प्रमाण है कि जब शिव जी ने पहली बार तीसरी आंख खोली तो कामदेव जलकर भष्म हो गए। शिव का तीसरा नेत्र मनुष्य के लिए ज्ञान रुपी नेत्र को विकसित करने की प्रेरणा देने वाला है ताकि मनुष्य धरती पर ज्ञान द्वारा काम और वासनाओं से मुक्त होकर मुक्ति प्राप्त कर सके।

ऊॅं शब्द का अर्थ और उसका महत्तव

Image
                 हिंदू धर्म में ऊॅं शब्द का काफी महत्तव है। हर पूजा में या किसी भी मंत्र से पहले ऊॅं शब्द का उच्चारण आता है। यहां तक की हम किसी भी भगवान या देवी देवता के नाम का जाप करते हैं तो उसकी शुरूआत भी ऊॅं शब्द के उच्चारण से होती है। संस्कृत में तो इस शब्द को ब्रह्मांड का सबसे पहला स्वर माना गया है। उपनिषदों में भी ऊॅं शब्द के महत्तव का वर्णन विस्तार से मिलता है। कहते हैं कि ऊॅं शब्द हमें ईश्वर से जोडता है।                    मंड्यूकया उपनिषद में भी ऊॅं शब्द का महत्तव और उसका अर्थ समझाया गया है। इसमें अ शब्द का अर्थ है जागृत होना, जिसमें हम हर चीज हमारे मस्तिष्क और इंद्रियों के माध्यम से महसूस कर सकते हैं। उ शब्द का अर्थ है स्वप्न स्थिति, जिसमें हमें आवक अनुभव होता है। तीसरा शब्द है म जिसका अर्थ बताया गया है गहरी निद्रा अवस्था। इस अवस्था में हमारे मन में कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती है।                  एक अन्य मान्यता के अनुसार ऊॅं शब्द ब्रह्मा, विष्णु और महेश से संबंधित है। इस शब्द के तीनों अक्षर त्रिदेवों से संबंधित हैं। इस शब्द में दैविक शक्ति निहित है, जिसमें ब्रह्

रुद्राक्ष से जुड़ी ये अनोखी बातें !

Image
                रुद्राक्ष यानि रुद्र+अक्ष, रुद्र अर्थात भगवान शंकर व अक्ष अर्थात आंसू। भगवान शिव के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें भूमि पर गिरने से महान रुद्राक्ष अवतरित हुआ। उसके बाद भगवान शिव की आज्ञा पाकर पेड़ों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए।                 ये पेड़ दक्षिण एशिया में मुख्यतः जावा, मलयेशिया, ताइवान, भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं। भारत में ये असम, अरुणांचल प्रदेश और देहरादून में पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में होती हैं। रुद्राक्ष के प्रकार मुख्य रूप से रुद्राक्ष इस प्रकार है। एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव, दो मुखी श्री गौरी-शंकर, तीन मुखी तेजोमय अग्नि, चार मुखी श्री पंचदेव, पांच मुखी सर्वदेवमयी, छ: मुखी भगवान कार्तिकेय, सात मुखी प्रभु अनंत, आठ मुखी भगवान श्री गणेश, नौ मुखी भगवती देवी दुर्गा, दस मुखी श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र और चौदह मुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। इसके अलावा श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भ

कैलाश पर्वत का अद्भुत रहस्य

Image
                कैलाश पर्वत एक विशाल पर्वत है। यह प्रकृति की एक सुंदर रचना ही है। माना जाता है यदि कोई पिरामिड प्रकृति ने खुद बनाया है तो वह कैलाश पर्वत ही है। प्राचीन सनातन ग्रंथों में भगवान शिव को कैलाश पर्वत का स्वामी बताया गया है। पुरणों के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती यहीं पर निवास करते हैं। आज तथ्यों में हम आपको कैलाश पर्वत के कुध अद्भुत रहस्यों को बतायेंगे।                   कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का केंद्र, दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव के रूप में, यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं रूसिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया है।                 भूगोल और पौराणिक रूप से कैलाश पर्वत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है। और यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों जैसे माउन्ट