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Showing posts from August, 2016

5 सितंबर को है श्री गणेश चतुर्थी,घर पर बनाएं ईको फ्रेंडली गणेश

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                आदि देवता शिवपुत्र श्री गणेशजी का प्राकट्य भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। इस वर्ष सोमवार, 5 सितंबर 2016 को चतुर्थी मानी गई है। विघ्नहर्ता, बुद्धि प्रदाता, लक्ष्मी प्रदाता गणेश को प्रसन्न करने का इससे अच्छा समय दूसरा नहीं है। क्या आप आने वाले गणेशोत्सव को एक नए और कभी न भूलने वाले अंदाज में नहीं मनाना चाहेंगे?                 तो इस बार गणेश उत्सव पर अपने घर में खुद के बनाए ईकोफ्रेंडली गणेश की करें स्थापना। जी हां, बाजार में मिलने वाली महंगी मूर्तियों के बजाए खुद अपने परिवार के साथ बनाएं मिट्टी के गणेश और स्थापित करें। यह बेहद आसान है, आइए आपको बताते हैं, कैसे बनाएं मिट्टी के ईको फ्रेंडली गणेश? घर पर ईकोफ्रेंडली गणेश जी बनाने के लिए आपको निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी -  1 किलो पेपरमेशी मिट्टी (यह किसी भी स्टेशनरी दुकान पर गूंथी हुई मिल जाएगी), पानी, फि‍निशिंग के लिए ब्रश, मिट्टी की मूर्ति बनाने में उपयोग होने वाले औजार या चाकू, बोर्ड और पॉलीथिन। 1. सबसे पहले आप एक समतल स्थान पर बोर्ड को रखें और उस पर पॉलीथिन को टेप की सहायता से चिपका लें। 2. अब पेपर

कुंभ खत्म होते रातों-रात कहा गायब हो जाते हैं नागा साधू ?

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                  उज्जैन सिंहस्थ की पहचान बने नागा साधु आखरी शाही स्नान कर रात में ही उज्जैन से रवाना हो गए। एक महीने तक सिंहस्थ की शान नागा साधुओं के एकाएक गायब होने से लोग हैरान हैं। हैरानी का कारण ये भी है कि किसी भी कुम्भ में नागा साधुओं को आते और जाते कभी कोई नहीं देख पाता। सिंहस्थ में हजारों की संख्या में नागा साधु आए और चले भी गए, लेकिन किसी ने भी ना तो उन्हें आते हुए देखा और ना ही जाते हुए।                   वे कहां से आए? कैसे आए और कहां गायब हो गए? इसकी चर्चा अब शहर में हर कोई कर रहा है। राष्ट्रीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी जी महाराज के मुताबिक, नागा साधु जंगल के रास्तों से यात्रा करते हैं। आमतौर पर ये लोग देर रात में चलना शुरू करते हैं। यात्रा के दौरान ये लोग किसी गांव या शहर में नहीं जाते, बल्कि जंगल और वीरान रास्तों में डेरा डालते हैं।                   रात में यात्रा और दिन में जंगल में विश्राम करने के कारण सिंहस्थ में आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते। कुछ नागा साधु झुंड में निकलते है तो कुछ अकेले ही यात्रा करते हैं। ये लोग यात्रा में कंदमूल फ

भगवान शिव के गृहस्थ-जीवन के लिए 15 संदेश

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               एक बार पार्वती जी भगवान शंकर जी के साथ सत्संग कर रही थीं। उन्होंने भगवान भोलेनाथ से पूछा, गृहस्थ लोगों का कल्याण किस तरह हो सकता है? शंकर जी ने बताया़ ''ऐसे गृहस्थ पर सभी देवता, ऋषि एवं महर्षि प्रसन्न रहते हैं जिनमें यह गुण हो.... 1. सच बोलना, 2. सभी प्राणियों पर दया करना, 3. मन एवं इंद्रियों पर संयम रखना 4. सामर्थ्य के अनुसार सेवा-परोपकार करना 5. माता-पिता एवं बुजुर्गों की सेवा 6. शील एवं सदाचार से संपन्न रहना, 7. अतिथियों की सेवा को तत्पर रहना 8. क्षमाशील रहना 9. धर्मपूर्वक धन का उपार्जन करना 10. जो दूसरों के धन पर लालच नहीं रखता, 11. जो पराई स्त्री को वासना की नजर से नहीं देखता, 12. जो किसी की निंदा-चुगली नहीं करता 13. जो सबके प्रति मैत्री और दया भाव रखता है, 14. जो सौम्य वाणी बोलता है 15. स्वेच्छाचार से दूर रहता है, ऐसा आदर्श व्यक्ति सुखी गृहस्थ होता है। स्वर्गगामी होता है।                 भगवान शिव ने माता पार्वती को आगे बताया कि मनुष्य को जीवन में सदा शुभ कर्म ही करते रहना चाहिए। शुभ कर्मों का शुभ फल प्राप्त होता है और

शिव और कृष्ण के बीच हुआ था प्रथम जीवाणु युद्ध.

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                श्रीकृष्ण के पास यूं तो कई प्रकार के दिव्यास्त्र थे। लेकिन सुदर्शन चक्र मिलने के बाद सभी ओर उनकी साख बढ़ गई थी। शिवाजी सावंत की किताब ‘युगांधर अनुसार’श्रीकृष्ण को भगवान परशुराम ने सुदर्शन चक्र प्रदान किया था, तो दूसरी ओर वे पाशुपतास्त्र चलाना भी जानते थे। पाशुपतास्त्र शिव के बाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के पास ही था। इसके अलावा उनके पास प्रस्वपास्त्र भी था, जो शिव, वसुगण, भीष्म के पास ही था।                 प्रचलित मान्यता अनुसार कृष्ण ने असम में बाणासुर और भगवान शिव से युद्ध के समय ‘माहेश्वर ज्वर’ के विरुद्ध ‘वैष्णव ज्वर’ का प्रयोग कर विश्व का प्रथम ‘जीवाणु युद्ध’ लड़ा था। हालांकि यह शोध का विषय हो सकता है। कृष्ण से प्रद्युम्न का और प्रद्युम्न से अनिरुद्ध का जन्म हुआ। प्रद्युम्न के पुत्र तथा कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के रूप में उषा की ख्याति है। अनिरुद्ध की पत्नी उषा शोणितपुर के राजा वाणासुर की कन्या थी। अनिरुद्ध और उषा आपस में प्रेम करते थे।                 उषा ने अनिरुद्ध का हरण कर लिया था। वाणासुर को अनिरुद्ध-उषा का प्रेम पसंद नहीं था। उसने अनिरुद्ध को बंधक बन

भगवान शिव - पार्वती से जुड़ी विशेषता !

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                शिव परम पुरुषत्व के प्रतीक हैं, मगर उनके अर्द्धनारीश्वर रूप में उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का है। इसका अर्थ यह है कि जब शिव ने पार्वती को अपने अंदर शामिल कर लिया, तो वह आनंदित हो गए यानी पुरुष-गुण और स्त्री-गुण का मिलन होता है, तो आप स्थायी रूप से परमानंद की अवस्था में रहते हैं। अगर आप बाहरी तौर पर ऐसा करने की कोशिश करते हैं, तो वह स्थायी नहीं होता और उसके साथ आने वाली मुसीबतों से जीवन में कभी पीछा नहीं छूटता।                 पुरुष हो या स्त्री दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। ये सच है कि दोनों का अपना एक व्यक्तिगत जीवन होता है। मगर शादी है ही एक ऐसा गणित जो कि दो और दो एक क्र देता है। भगवान शिव का अर्ध नारी रूप इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि पत्नी का पति के जीवन में क्या स्थान है। शादी कभी भी कामुक इच्छाओं को पूरा करने का मार्ग नहीँ हो सकती। शादी काम पूर्ती का साधन नहीँ बल्कि काम नियंत्रण का साधन है।                  दूसरी और देवी पार्वती का रूप है - एक आदर्श पत्नी और माँ। जी हाँ इसमें कोई दो राय नहीं कि देवी पार्वती को ये पूर्व ज्ञात था की विवाह के

क्या कहता है सुबह के स्नान के बारे में हिन्दू धर्म ?

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               हिन्दू धर्म में सफाई का अपना एक खास महत्व है। परन्तु क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म स्नान के बारे में क्या कहता है। अगर नहीं तो आइये जानते हैं कुछ रोचक तथ्य। हिन्दू धर्म में सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र के अनुसार चार उपनाम दिए है - मुनि स्नान:-  मुनि स्नान सर्वोत्तम है। ये स्नान सुबह 4 से 5 के बिच किया जाता है। मुनि स्नान घर में सुख ,शांति ,समृद्धि, विध्या , बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है । देव स्नान:-  ये स्नान सुबह 5 से 6 के बिच किया जाता है ।देव स्नान आप के जीवन में यश , किर्ती , धन वैभव,सुख ,शान्ति, संतोष , प्रदान करता है। मानव स्नान:- ये स्नान सुबह 6 से 8 के बिच किया जाता है। मानव स्नान काम में सफलता ,भाग्य ,अच्छे कर्मो की सूझ ,परिवार में एकता , मंगल मय , प्रदान करता है। राक्षसी स्नान:- ये स्नान सुबह 8 के बाद किया जाता है । राक्षसी स्नान दरिद्रता , हानि , कलेश ,धन हानि , परेशानी, प्रदान करता है ।किसी भी मनुष्य को 8 के बाद स्नान नही करना चाहिए। पुराने जमाने में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान करते थे। खास कर जो घर की स्त्री होती थी ।

शादी के फैसले में किन बातों का रखें ध्यान ?

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                 कुंवारे लोगों के मन में यह सवाल यह गूंजता रहता हैं कि ‘शादी करें या ना करें’ और अगर करें तो किससे, वहीं शादी-शुदा ये सोचते रहते हैं कि शादीशुदा जीवन को और अधिक मधुर कैसे बनाएं। शादियों में अकसर गड़बड़ होने की एक वजह है कि आपको इस रिश्ते में बहुत सारी चीजें साझा करनी पड़ती हैं। मुद्दा न तो शादी का है और न ही महिला-पुरुष या पति-पत्नी का। किसी भी हालात में अगर आपको बहुत सारी चीजें किसी दूसरे के साथ साझा करनी पड़ें तो आपको इसी तरह की परेशानिओं का सामना करना पड़ेगा।                 शादी करने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन आपके भीतर शादी की जरूरत न होने पर भी अगर आप शादी करते हैं तो यह एक अपराध है, क्योंकि तब आप अपने और कम से कम एक और व्यक्ति के जीवन में दुख का कारण बनेंगे।                 ऐसे बहुत से दंपत्ति हैं, जो बड़ी खूबसूरती से साथ रहते हैं, एक दूसरे से गहरा प्रेम करते हैं और एक दूसरे के जबरदस्त साथी हैं। लेकिन इसी के साथ ये रिश्ता सबसे बुरे रूप भी ले सकता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि, बंद दरवाजों के पीछे दो लोगों के बीच क्या असभ्य और बुरी चीजें हो रही हैं, यह किसी

बड़ी पुरानी है भारत में रक्षाबंधन की परंपरा !

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                रक्षाबंधन हिन्दुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई बहन के प्यार का प्रतीक है। इस दिन सभी बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई की लम्बी उम्र की कामना करती हैं। भाई अपनी बहन को रक्षा करने का वचन देता है। इस वर्ष यह त्यौहार 18 अगस्त दिन गुरूवार को मनाया जायेगा| रक्षा बंधन का त्यौहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक होकर चारों ओर अपनी छटा को बिखेरता सा प्रतीत होता है। सात्विक एवं पवित्रता का सौंदर्य लिए यह त्यौहार सभी जन के हृदय को अपनी खुशबू से महकाता है। इतना पवित्र पर्व यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए तो इसकी शुभता और भी अधिक बढ़ जाती है।                 भाई बहन का यह पावन पर्व आज से ही नहीं बल्कि युगों-युगों से चलता चला आ रहा है भविष्य पुराण में भी इसका व्याख्यान किया गया है। एक बार दानवों और देवताओं में युद्ध शुरू हुआ। दानव देवताओं पर भारी पड़ने लगे तब इन्द्र घबराकर वृहस्पतिदेव के पास गए| वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के

How Lord Shiva came into being ?

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                  All of you have heard of the Hindu trinity – Lord Brahma, Lord Vishnu and Lord Shiva. The trio symbolizes the entire process of life.Lord Brahma is often referred to as the creator and Lord Vishnu is known as the protector while Lord Shiva is famous as the destroyer. But do you know how Shiva came into being? Image Courtesy Isha Blog                   Once, Brahma and Vishnu had a debate over each other’s supremacy. That is when a beaming, radiant pillar struck and extended beyond the horizon and dug deep into the earth. Both Brahma and Vishnu were left clueless about its origin. The former turned into a goose and the latter transformed into a boar to trace the starting and ending points of the pillar.                   But they failed in their attempts. Soon, Shiva emerged from the pillar to reveal himself. Thus, the third leg of the trinity came into being to make both Brahma and Vishnu realize that there was another power governing the universe.        

जानिए क्या है तिरंगा फहराने का सही तरीका !

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               15 अगस्त 1947 के दिन भारत आजाद हुआ था। हर साल हम इसी दिन स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। तिरंगा भारत के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। तिरंगे पर हर भारतीय को गर्व है। तिरंगे की शान को बरकरार रखने के लिए हर भारतीय अपनी जान को दांव पर लगा देता है। हर स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय प्रधानमंत्री लालकिले से झंडा फहराते हैं। लेकिन 15 अगस्त, 1947 को ऐसा नहीं हुआ था। नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को लालकिले से झंडा फहराया था।                सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, रिवाजों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। ध्वज संहिता-भारत के स्थान पर भारतीय ध्वज संहिता-2002 को 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया है। ज्ञात हो कि 15 अगस्त भारत के अलावा तीन अन्य देशों का भी स्वतंत्रता दिवस है। दक्षिण कोरिया जापान से 15 अगस्त, 1945 को आज़ाद हुआ। ब्रिटेन से बहरीन 15 अगस्त, 1971 को और फ्रांस से कांगो 15 अगस्त, 1960 को आज़ाद हुआ। जनिये तिरंगा फहराने का सही तरीका:- जब भी तिरंगा फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जा

हिंदू धर्म में होती हैं 8 तरह की शादियां!

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                वैसे तो सभी धर्मों में शादी का अलग-अलग महत्व है लेकिन हिंदू धर्म में शादी का एक अलग ही महत्व माना जाता है। शादी एक एेसा पवित्र बंधन है, जो दो लोगों को नहीं बल्कि दो परिवारों को सात जन्मों के बंधन में बाध देता है। एेसा कहा जाता है कि हिंदू धर्म में सोलाह संस्कार होते है जिनमें से विवाह को एक संस्कार माना जाता है।                  हिंदू धर्म में शारीरिक संबंधों से ज्यादा अात्मिक संबंध को अहमियत दा जाती है और इसी को पवित्र बंधन का नाम दिया जाता है लेकिन क्या अापको पता हैं कि हमारे हिंदू धर्म में विवाह कितने प्रकार के होते हैं। अगर नहीं जानते तो अाइए जानते हिन्दू धर्म की 8 तरह की शादियां के बारे में... 1.ब्रह्म विवाह  जब लड़का और लड़की दोनों पक्षों की अापसी सहमति से रिश्ता किया जाता है तो उसे ‘ब्रह्म विवाह’ कहा जाता है।हिंदु धर्म में इस विवाह को पहला स्थान दिया जाता है। इस तरह के विवाह में लड़की को आभूषणों और दान-दहेज के साथ ससुराल विदा किया जाता है। 2. दैव विवाह  दैव विवाह तब किया जाता है, जब सेवा कार्य के रूप में अपनी कन्या को दान कर दिया जाता है। धार्मिक अनुष्

क्या भारत में मुसलमानो ने 800 वर्षो तक शासन किया है?

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                   क्या भारत में मुसलमानो ने 800 वर्षो तक शासन किया है? सुनने में यही आता है पर न कभी कोई आत्ममंथन करता है और न इतिहास का सही अवलोकन करता है । आइये प्रारम्भ करते है मुहम्मद बिन कासिम से। भारत पर पहला आक्रमण मुहम्मद बिन ने 711 ई में सिंध पर किया। राजा दाहिर पूरी शक्ति से लड़े और मुसलमानो के धोखे के शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हुए।                   दूसरा हमला 735 में राजपूताना पर हुआ जब हज्जात ने सेना भेजकर बाप्पा रावल के राज्य पर आक्रमण किया। वीर बाप्पा रावल ने मुसलमानो को न केवल खदेड़ा बल्कि अफगानिस्तान तक मुस्लिम राज्यो को रौंदते हुए अरब की सीमा तक पहुँच गए। ईरान अफगानिस्तान के मुस्लिम सुल्तानों ने उन्हें अपनी पुत्रिया भेंट की और उन्होंने 35 मुस्लिम लड़कियो से विवाह करके सनातन धर्म का डंका पुन बजाया। बाप्पा रावल का इतिहास कही नहीं पढ़ाया जाता यहाँ तक की अधिकतर इतिहासकर उनका नाम भी छुपाते है। गिनती भर हिन्दू होंगे जो उनका नाम जानते है। दूसरे ही युद्ध में भारत से इस्लाम समाप्त हो चूका था। ये था भारत में पहली बार इस्लाम का नाश ।                   अब आगे बढ़ते है गजनवी पर

भक्ति से भगवान हैं !

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                   भक्ति में इतनी शक्ति है कि वो भगवान को पैदा कर देती है। हमें भक्ति के लिए भगवान की जरूरत नहीं, भक्ति है तो भगवान खुद पैदा हो जाएंगे। इस संसार में जीवन जीने का सबसे समझदारी भरा तरीका है – हमेशा भक्ति की अवस्था में रहना। हालांकि ज्यादातर विचारशील लोग मेरी बात से सहमत नहीं होंगे, क्योंकि तथाकथित भक्त अकसर इस धरती के सबसे बड़े मूर्ख नजर आते हैं। एक कारण तो यह है कि लोग बस भक्त होने का ढोंग और दावा करते हैं, वे वास्तव में भक्त हैं नहीं। वे बस जबरदस्त प्रशंसक हैं, उन्हें आप बस ‘फैन’ के रूप में देख सकते हैं, लेकिन आमतौर पर उन्हें भक्त की तरह समझ लिया जाता है।                    भक्त होने का मतलब यह कतई नहीं है कि दिन और रात आप पूजा ही करते रहें। भक्त वह है जो बस हमेशा लगा हुआ है, अपने मार्ग से एक पल के लिए भी विचलित नहीं होता। वह ऐसा शख्स नहीं होता जो हर स्टेशन पर उतरता-चढ़ता रहे। वह हमेशा अपने मार्ग पर होता है, वहां से डिगता नहीं है। अगर ऐसा नहीं है तो यात्रा बेवजह लंबी हो जाती है।                    एक बड़ी सुंदर कहानी है। एक राजा था जो एक आश्रम को संरक्षण दे र

दूध : धरती का अमृत

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                दूध पुराने समय से ही मनुष्य को बहुत पसन्द है। दूध को धरती का अमृत कहा गया है। दूध में विटामिन `सी´ को छोड़कर शरीर के लिए सभी पोषक तत्त्व यानि विटामिन हैं। इसलिए दूध को पूर्ण भोजन माना गया है। सभी दूधों में माता के दूध को श्रेष्ठ माना जाता है, दूसरे क्रम में गाय का दूध है। बीमार लोगों के लिए गाय का दूध श्रेष्ठ है। गैस तथा मन्दपाचनशक्ति वालों को सोंठ, इलायची, पीपर, पीपरामूल जैसे पाचक मसाले डालकर उबला हुआ दूध पीना चाहिए। दूध को ज्यादा देर तक उबालने से उसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं और दूध गाढ़ा हो जाता है।                 दूध को उबालकर उससे मलाई निकाली जाती है। मलाई गरिष्ठ, शीतल (ठण्डा), बलवर्धक, तृप्तिकारक, पुष्टिकारक, कफकारक और धातुवर्धक है। यह पित, वायु, रक्तपित एवं रक्तदोष को खत्म करती है। गुड़ डाला हुआ दूध मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) को खत्म करता है। सुबह का दूध विशेषकर शाम के दूध की तुलना में भारी व ठण्डा होता है। रात में पिया हुआ दूध बुद्धिवर्द्धक, टी.बी.नाशक, बूढ़ों के लिए वीर्यप्रद आदि दोषों को खत्म करने वाला होता है। खाने के बाद होने वाली जलन को शान्त करने के

आइये जानते हैं भगवान शिव के इन 19 अवतारों के बारे में ( भाग - २ )

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                पिछले लेख में आपने आइये जानते हैं भगवान शिव के इन 19 अवतारों के बारे में ( भाग - १ ) के अंतर्गत भगवान शिव के ९ अवतारों के बारे में जाना। लेख की बढ़ती लम्बाई और पाठकों की सहूलियत के लिए मैने इस लेख को दो भागों में बाँटा है। आज के इस आइये जानते हैं भगवान शिव के इन 19 अवतारों के बारे में ( भाग - २ )  में आप भगवन शिव के बाकी अवतारों के बारे में जानेंगे। 10. वृषभ अवतार भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत-सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी। विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषि मुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया। 11. यतिनाथ अवतार भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था।

आइये जानते हैं भगवान शिव के इन 19 अवतारों के बारे में ( भाग - १ )

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                 इन दिनों भगवान शिव का प्रिय पवित्र सावन मास चल रहा है। ये बहुत ही उचित अवसर है, भगवान शिव के चरित्र, स्वरूप व अवतारों के बारे में जानने का। पुराणों के अनुसार, शिव का अर्थ ही है कल्याण स्वरूप व कल्याण करने वाला। भगवान शिव सदैव अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं।                  महादेव ने अनेक अवतार लेकर अपने भक्तों की रक्षा की है। शिवपुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। सावन के पवित्र महीने में भगवान शिव के 19 अवतारों के बारे में जानते हैं...  1. शरभ अवतार भगवान शंकर का पहला अवतार है शरभ। इस अवतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में बताया गया आठ पैरों वाला प्राणी, जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार- हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकश्यप के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हु

ऋषि मुनि आसन पर बैठकर क्यों करते थे तप ?

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                 वैदिककाल से हमारे मुनि हमेशा आसन पर बैठकर तप किया करते थे। आसन को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है. भगवान भी आसन पर विराजमान होते हैं। आसन पर बैठने से पूजा का फल पूरी तरह से प्राप्त हो जाता है। बिना आसन के बैठने से सारी पूजा का फल देव इंद्र ले जाता है. आसन पर बैठने के धार्मिक महत्व हो सकते हैं लेकिन क्या आपको इसके वैज्ञानिक कारणों के बारे में भी पता है. जिसे वैदिक वाटिका आपको बता रही है। आसन कई तरह का हो सकता है- कंबल आसन, मृगछाल आसन, कपड़े आसन।                  वैज्ञानिकों नें शोध के आधार पर आसन पर बैठने के कई फायदों के बारे में बताया है। जिस तरह से भारी बारिश की वजह से बादल आपस में टकराते हैं और उनसे बिजली गिरती है और धरती पर किसी वस्तु या धातु पर लगने के बाद पृथ्वी में वापस चली जाती है। ठीक एैसा ही आसन पर बैठने का रहस्य भी है।                 ब्रहमांड में अनंत शक्तियों और उर्जा का भंडार है, और धरती ब्राहमांड का ही हिस्सा है। इसलिए जब इंसान पूजा व मंत्रों का जाप करता है तब ये शक्तियां और उर्जा विद्युत चुंबकीय तरगों के जरिए प्रभावित होने लगती हैं। जो मानव शरीर